ABSTRACT:
महात्मा गांधी के अनुसार-"शिक्षा मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत है।" शिक्षा का अर्थ सीखना नहीं है वरन मस्तिष्क की शक्तियो का विकास करना है तथा निरन्तर अभ्यास से बौद्धिक क्षमता को विकसित करना है। साधारण बोलचाल में शिक्षा का अर्थ विद्यालयीन शिक्षा से लिया जाता है परन्तु बालक के सम्पूर्ण जीवन की गणना उसके शैक्षिक जीवन तथा स्तर पर निर्भर करना है। छात्र जीवन में अधिक से अधिक बौद्धिक एवं आंतरिक ज्ञान को बाहर लाने में योग देने वाली एक क्रिया है जिसका आरम्भ मां की कोख से शिक्षा की मंदिर होकर चलती है। शिक्षा के अभाव मे हमारी किर्ति का प्रकाश अस्त होने पर कुम्हल बन जाता है। ठीक उसी प्रकार शिक्षा के प्रकाश को पाकर प्रत्येक व्यक्ति कमल फूल की तरह खिल उठता है तथा अशिक्षित रहने पर शोक एवं कष्ठ के अंधकार में डूबा रहता है। सरकार द्वारा निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा, पढ़बो-पढ़ाबों योजना मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान जिसका उद्देश्य है गरीब बच्चो को अधिक लाभ मिल सके और शिक्षा के प्रति रूचि जागृत हो सके ऐसे योजनाएं चलाए जा रहें हैं। विभिन्न सरकारी योजनाओं के बाद भी छात्र प्राथमिक विद्यालयीन शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात आगे पूर्व माध्यमिक स्तर तक आते-आते जीवकोपार्जन हेतु व्यस्त होने लगते है शिक्षा के प्रति अरूचि स्पष्ट रूप से समग्र आने लगते है। शिक्षा के प्रति अरूचि का आना स्वभाविक नही होता।अरूचि तथा शिक्षा के प्रति तत्परता की कमी के कारण शाला त्याग की प्रवृत्ति का विकास होने लगता है। छात्र अपने हितो की रक्षा अपने विकास को लेकर गंभीरता से नहीं समझ पाते परिवार के प्रति दायित्व तथा असमाजिक परिवेश सभी परिदृश्यों को बदल देता है। शाला त्याग की भावना को विकसित करने लगते है स्वभाविक अरूचि उत्पन्न हो जाता है।
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प्रीति श्रीवास्तव; अमित कुमार वर्मा, "ग्रामीण शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययन विद्यार्थियों में शाला त्याग करने की प्रवृत्तिः एक अध्यय", Journal of Ravishankar University (Part-A: SOCIAL-SCIENCE), 23(1), pp. 52-60DOI: https://doi.org/10.52228/JRUA.2017-23-1-7