ABSTRACT:
नुक्कड़ नाटक गुरिल्ला युद्ध का साहित्यिक युग है, आम आदमी की भागीदारी के लिए अच्छा मंच है, मुश्किल इस बात की है कि हमने नुक्कड़ नाटकों का उपयोग केवल राजनीतिक भ्रष्टाचार और आराजकता से निपटने और लड़ने भर के लिए किया। नुक्कड़ नाटकों में ‘‘सोशल रेलिवेस’’ पर ज्यादा ध्यान केंद्रित नहीं किया। इसमें कोई शक नहीं कि राजनीतिक भ्रष्टाचार ही तमाम किस्मों के भ्रष्टाचार की जननी थी। स्वतंत्रता के पहले आम आदमी ने जो सपने बुने वे चूर-चूर हो गये। बढ़ती जनसंख्या, रिश्वतखोरी, नौकरशाही, चोर बाजारी, मुनाफाखेरी, स्वार्थी मनोवृत्ति ने मजदूर, किसान और गरीब वर्ग की आर्थिक स्थिति को शोचनीय बना दिया।
आम आदमी को जागरूक करने के लिए एक मंच की आवश्यकता थी जो किसी भी स्थान पर कुछ पात्रों द्वारा बिना ताम-झाम के प्रस्तुत किया जा सके वह था ‘‘नुक्कड़ नाटक’’
Cite this article:
राजेश कुमाद दुबे; प्राची खरे, "नुक्कड़ नाटक और विभु कुमार", Journal of Ravishankar University (Part-A: SOCIAL-SCIENCE), 23(1), pp. 33-36.DOI: https://doi.org/10.52228/JRUA.2017-23-1-1
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