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Author(s): डी.एन. खुटे

Email(s): dnkhute@gmail.com

Address: इतिहास अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, छ.ग. *Corresponding author: dnkhute@gmail.com

Published In:   Volume - 30,      Issue - 1,     Year - 2024

DOI: 10.52228/JRUA.2024-30-1-2  

ABSTRACT:
छत्तीसगढ़ का प्रदेश भोंसला राजकुमारों के अधिकार में रखा गया। इन राजकुमारों में बिम्बाजी, व्यंकोजी और अप्पा साहब के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। बिम्बाजी ने यहां 1757 ई. में अपना प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया तथा वह प्रथम मराठा शासक हुआ। परन्तु हैहय कालीन (कल्चुरि) शासन व्यवस्था में उसने कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं किया। बिम्बाजी की मृत्यु के पश्चात् मराठा शासन नीति में परिवर्तन आया। बिम्बाजी के बाद व्यंकोजी ने छत्तीसगढ़ का शासन सूबेदारों के माध्यम से चलाना आरम्भ किया। शासन की यह नवीन प्रणाली सन् 1787 से 1818 ई. तक चलती रही, परन्तु इस क्षेत्र का आंतरिक शासन अनेक वर्षों तक पूर्ववत चलता रहा। वास्तव में शासन के क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन 1790 ई. में द्वितीय मराठा सूबेदार विट्ठल दिनकर के आगमन के बाद हुआ। विट्ठल राव दिनकर एक योग्य, प्रतिभाशाली व सुधारवादी सूबेदार थे। उन्होंने 1790 ई. में राजस्व व्यवस्था में सुधार लाने के उद्देश्य से एक नवीन पद्धति प्रारंभ की, जिसे ‘‘परगना पद्धति‘‘ कहा जाता है। उसने हैहय (कल्चुरि) कालीन शासकों द्वारा नियुक्त दीवानों और दाऊओं को हटाकर पुराने गढ़ों की इकाई को समाप्त कर दिया।

Cite this article:
खुटे (2024). छत्तीसगढ़ में मराठों की प्रशासनिक व्यवस्था: एक ऐतिहासिक अवलोकन. Journal of Ravishankar University (Part-A: SOCIAL-SCIENCE), 30(1), pp.14-22. DOI:DOI: https://doi.org/10.52228/JRUA.2024-30-1-2


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