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Author(s): डी. एन. खुटे

Email(s): dnkhute@gmail.com

Address: इतिहास अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.).

Published In:   Volume - 26,      Issue - 1,     Year - 2020

DOI: 10.52228/JRUA.2020-26-1-5  

ABSTRACT:
बस्तर के वनों में मुख्यतः साल, सागौन, बीजा, साजा, धावड़ा, मछुआ, तेंदू, हर्रा, आंवला, इमली, खैर, बांस तथा सलफी आदि के वृक्ष पाये जाते है। यहां पर हम बस्तर में प्रमुखता से पाये जाने वाले वृक्ष सलफी के बारे में चर्चा करना चाहते है। सलफी का वृक्ष नारियल प्रजाति का वृक्ष होता है। हलबी भाग में इसे सलफी रूख, गोंडी में गोर्गा मर्रा, अंग्रेजी में फिश टेल पाम ट्री कहा जाता है। वनस्पति शास्त्र की भाषा में करयोटा यूरेंस के नाम से इसे जाना जाता है। बस्तर अंचल में यह प्रायः सर्वत्र पाया जाता है। माड़िया जनजाति का सीमित संसार है इसलिए वे कहते हैं- वालिया वाटो गोर्गा उले मामा ले अर्थात् ओ मामा ! तुम जहां भी जाओगे सलफी का पेड़ अवश्य पाओगे। सलफी के वृक्ष से सल्फी नामक प्राकृतिक पेय पदार्थ की प्राप्ति होती है। छिंद वृक्षों से छिंद रस, ताड़ वृक्षों से ताड़ी मादक पेय पदार्थ प्राप्त होता है। सल्फी रस को बस्तर की बीयर भी कहा जाता है। रस निकालने के लिए सलफी वृक्ष के साथ बांस की सीढ़ीनुमा संरचना तैयार की जाती है। सलफी का संरक्षण बस्तर में धन की तरह होता है। इस तरह स्वतः ही पर्यावरण सुरक्षा होती जा रही है- सदियों से।

Cite this article:
खुटे (2020). पर्यावरण संरक्षण और बस्तर का धन: सलफी. Journal of Ravishankar University (Part-A: SOCIAL-SCIENCE), 26(1), pp.35-38.DOI: https://doi.org/10.52228/JRUA.2020-26-1-5


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