ABSTRACT:
छत्तीसगढ़ राज्य भारत के कुछ सौभाग्यशाली राज्यों में एक है जहाँ प्रकृति की विशेष कृपा है । इस राज्य में वनों का आच्छादन बहुत बड़े क्षेत्र पर है साथ ही महानदी , शिवनाथ , जोक , अरपा , पैरी एवं इन्द्रावती जैसी सदानीरा नदियों से इस राज्य का बहुत बड़ा भाग सिंचित रहता है । पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात् जीव जगत के विकास पर पर्यावरण ने बहुत गहरा प्रभाव डाला है इसी क्रम में मानव का आगमन आज से लगभग 25 लाख वर्ष पूर्व हुआ उस समय का जो पर्यावरण था उसे पुरा पर्यावरण कहा जाता है । पुरा पर्यावरण के अन्तर्गत प्रतिनूतन काल एवं नूतन काल आते है जिसके प्रमाण भारत के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त हुये है । इस प्रकार के प्रमाणों को छत्तीसगढ़ से भी अन्वेषित किया गया है । छत्तीसगढ़ राज्य प्रागैतिहासिक संस्कृतियों के विकास के लिये आदर्श क्षेत्र रहा है इसीलिये यहाँ पुरा पाषाण काल , मध्य पाषाण काल एवं नव पाषाण काल के सांस्कृतिक अवशेषों का खोजा जा सका है । उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र मध्यपाषाण काल के दर्जनों पुरास्थलों की प्रापित हुयी है जबकि नव पाषाण काल के अपेक्षाकृत कुछ कम सांस्कृतिक अवशेषों की प्रापित हुयी है । इसका कारण संभवत प्रागैतिहासिक अनुसंधानों एवं सर्वेक्षणों का अपेक्षाकृत कम होना माना जाना चाहिये । इस शोध पत्र के माध्यम से इस क्षेत्र के पुरा पर्यावरण एवं प्रागैतिहासिक संस्कृतियों की रूपरेखा को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है ।
Cite this article:
मिश्रा (2016). छत्तीसगढ़ का पुरा पर्यावरण और प्रागैतिहासिक संरक्षण का विकास. Journal of Ravishankar University (Part-A: Science), 22(1), pp.92-98.