ABSTRACT:
सारंगढ़ रियासत स्वतंत्रता से पूर्व देशी रियासतों में से एक था , जो क्षेत्रफल की दृष्टि से 12 वें क्रम का रियासत था , जिसके संस्थापक जगदेव साय हैं । सारंगढ़ रियासत में अनेक शासकों जैसे- सबरों , भैना तथा गोड़ राजवंश ( कल्चुरियों ) ने शासन किया तथा सारंगढ़ के वैभव को और ऊँचा करते हुए स्वर्ग की तरह वैभवशाली व सुख - सुविधाओं से परिपूर्ण बनाया । सारंगढ़ का नामकरण काफी दिलचस्प है , जो प्रकृति के आधार पर हुआ है न कि किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर । सारंगढ़ एक धार्मिक रियासत है , जहाँ प्रारंभ , मध्य और अंत में क्रमशः माता नाथलदाई ( ग्राम टिमरलगा ) , समलेश्वरी दाई ( सारंगढ़ का मध्य भाग ) और कौशलेश्वरी माता ( ग्राम कोसीर ) में स्थित हैं , जो अपने आशीष से रियासत को धन्य - धान्य व सभी सुख - सुविधा प्रदान करती हैं । सारंगढ़ रियासत का क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है , जो अत्यंत ही सुंदर दिखाई पड़ता है । यह क्षेत्र ' धर्मों का संगम - स्थल ' , ' मनुष्यों की जन्मभूमि ' तथा ' संस्कृतियों का संगम स्थल ' मान जाता है । यहाँ धर्म , जाति , पेड़ - पौधे , फल , पशु - पक्षियों , अंक - रंग - अंग , खाद्य - पदार्थों एवं भूमि- वैशिष्ट्य के आधार पर स्थानों का नामकरण हुआ है , जो भावी पीढ़ी को ऐतिहासिक , धार्मिक , साहित्यिक , राजनैतिक तथा भौगोलिक जानकारियों से उनका भविष्य उज्ज्वल बनाने में सहायक होगा ।
Cite this article:
टण्डन (2016). सारंगढ़ रियासत के स्थान - नामों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन. Journal of Ravishankar University (Part-A: Science), 22(1), pp.71-80.