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Author(s): अशोक प्रधान

Email(s): Email ID Not Available

Address: मानवविज्ञान अध्ययनशाला
पं . रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय , रायपुर

Published In:   Volume - 14,      Issue - 1,     Year - 2001

DOI: Not Available

ABSTRACT:
सामाजिक सुव्यवस्था एवं शांति स्थापित करने के लिए प्रत्येक समाज में नियम तथा नियमों के पालन कराने के लिए सामाजिक व्यवस्था होती है । आदिम समाज में कानून , न्याय तथा सरकार व्यवस्था अलिखित तथा परंपरा के रूप में एक पीढ़ी से दूसरे पीढी तक हस्तांतरित होती हुई आ रही है । समाज में मानवीय किया - कलापों के दौरान समाज के अन्य लोगों के साथ व्यवहार करने के लिए अनेक सामान्य नियम / व्यवहार / रीति प्रचलित हो जाते हैं जिन्हें उस समाज के अधिकांश लोग मानते हैं । इसे मानव वैज्ञानिक एवं समाज वैज्ञानिक जनरीति कहते हैं । यह जनरीति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है । प्रत्येक पीढ़ी में इसका सफल अनुभव इसे और भी अधिक दृढ तथा सर्वमान्य बना देती है । पीढी दर पीढी हस्तांतरित सामाजिक मान्यता प्राप्त जनरीति प्रथा कहलाती है । धीरे - धीरे यह प्रथा अत्यधिक दृढ तथा सर्वमान्य हो जाती है । इस सामाजिक प्रथा के पालन न करने वाले को जब दंड देने की व्यवस्था की जाती है तब प्रथा विधि अथवा कानून का रूप धारण कर लेती है । समाज आदिम हो या आधुनिक इनमें प्रचलित कानून का आधार प्रथा और जनरीतियां ही रही है । वर्तमान अध्ययन बिरहोर विशेष पिछड़ी जनजाति के परंपरागत जाति पंचायत पर किया गया है।

Cite this article:
प्रधान (2001). छत्तीसगढ़ की बिरहोर विशेष पिछड़ी जनजाति में पारंपरिक जाति - पंचायत. Journal of Ravishankar University (Part-A: Science), 14(1), pp.73-76.


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