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उपाध्याय, त्रिपाठी (2022). सूचना का अधिकार के उपयोग में अनुसूचित जनजातियों की भागीदारी रूएक अध्ययन. Journal of Ravishankar University (Part-A: SOCIAL-SCIENCE), 28(1), pp. 76-79.
सूचना का अधिकार के उपयोग में अनुसूचित जनजातियों की भागीदारी
:एक अध्ययन
सुधीर कुमार उपाध्याय1, डॉ. नरेंद्र त्रिपाठी2
1, शोधार्थी
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़
2 असिस्टेंट
प्रोफेसर, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़
*Corresponding author: sudhirupad@gmail.com
शोध सारांश :
सूचना का अधिकार के अपयोग में अनुसूचित जनजातियों की भागीदारी
विषय को लेकर यह अध्ययन किया गया है। इस शोध के लिए छत्तीसगढ़ के शासकीय विभागों को
प्राप्त हुए सूचना का अधिकार आवेदनों को आधार बनाया गया है। एक दशक के अध्ययन के लिए
वर्ष 2010 से 2019 तक के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। इस शोध का उद्देश्य यह
जानना है कि सूचना का अधिकार के उपयोग के प्रति अनुसूचित जनजातियों में कितनी जागरूकता
है। इस वर्ग के लोग अधिनियम का उपयोग कर रहे हैं या नहीं। अध्ययन के लिए छत्तीसगढ़ राज्य
सूचना आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। व्याख्या
के लिए अंतर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि का इस्तेमाल किया गया है। अध्ययन से ज्ञात होता
है कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों
द्वारा सूचना के अधिकार का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन इनकी
संख्या कम है। सूचना का अधिकार अधिनियम के उपयोग के मामले में अब भी इनमें जागरूकता
का अभाव है।
शब्दकुंजी :सूचना का
अधिकार, अनुसूचित जनजाति, जागरूकता, उपयोग
प्रस्तावना:
सूचना का अधिकार का मूल
उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, सरकार के कार्य में पारदर्शिता
और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को नियंत्रित
करना और वास्तविक अर्थों में हमारे लोकतंत्र को लोगों के लिए कामयाब बनाना है। यह अधिनियम
नागरिकों को सरकार की गतिविधियों के बारे में जानकारी देने के लिए एक बड़ा कदम है।
भारत में 12 अक्टूबर 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम
अस्तित्व में आया। तब से लेकर इस अधिकार का उपयोग करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन
बढ़ रही है। देश के लोग सरकारी विभागों से विभिन्न जानकारियां प्राप्त करने के लिए इसका
उपयोग कर रहे हैं।
सूचना के अधिकार का उपयोग कर अब न सिर्फ सरकारी विभागों में
खर्च की गई राशि का ब्यौरा मांगा जा रहा है, बल्कि इस अधिनियम की मदद से अब छात्र आंसरशीट से संबंधित जानकारी
भी मांग रहे हैं। सूचना के अधिकार से आवेदन कर निर्माण कार्यों के बारे में भी जानकारी
ली जा रही है। समाज का हर तबका इस अधिकार का इस्तेमाल कर रहा है। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को वंचित समाज के रूप में देखा जाता है।
आर्थिक और शैक्षणिक मोर्चे पर इनकी उपलब्धियां अन्य समाजों की तुलना में कम हैं। जंगलों में संचार के साधन भी कम हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि सूचना
के अधिकार के बारे में उनकी जागरूकता और उसके उपयोग के मामले में यह समुदाय अन्य समुदायों
की तुलना में कहां होगा। हालांकि, समय के साथ आदिवासी इलाकों
में विकास की पहुंच बढ़ रही है। पक्की सड़कें बन रही हैं। स्कूल और दूसरे शैक्षणिक संस्थान
खुल रहे हैं। राजनीति में भागीदारी भी बढ़ रही है। विकास की गतिविधियों के चलते आदिवासियों की नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ी
की तुलना में बहुत जागरूक हो चली है। आदिवासी युवा प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी कामयाबी
दर्ज करा रहे हैं। प्रशासनिक व अन्य पदों पर चयनित हो रहे हैं। इस जागरूकता का नतीजा यह है कि वे सूचना के अधिकार से भी अवगत हो रहे हैं और उसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। इससे उम्मीद
जागती है कि सूचना के अधिकार से लैस होकर वे सशक्त बनेंगे, जो इस कानून का उद्देश्य भी है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य की जनसंख्या 255.45 लाख थी। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग की जनसंख्या 78.22 लाख यानी 30.62 प्रतिशत थी।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की साक्षरता का औसत
प्रतिशत 59.09
था। (आदिमजातितथाअनुसूचितजातिविकासविभागछत्तीसगढ़शासन, 2020)। धीरे-धीरे अनुसूचित जनजातियों
की साक्षरता का प्रतिशत बढ़ रहा है। समाज की नई पीढ़ी से सूचना के अधिकार के तहत आ रहे
आवेदन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वह अपने अधिकारों से अवगत हो रहे है और उसका
इस्तेमाल भी करने लगे हैं। यह हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने की ओर एक कदम है। यह सूचना
के अधिकार की सार्थकता का एक उदाहरण है।
भारत में वर्ष 2005से सूचना का अधिकार अधिनियम लागू है। इस अधिनियम का उपयोग कर
देश का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग सेजानकारी प्राप्त कर सकता है। आरटीआई के
तहत आवेदन हस्त लिखित या टाइप करके भी दी जा सकती है। ऑनलाइन आवेदन भी स्वीकार किया
जाने लगा है। (कृष्ण, 2019) पिछले कुछ
सालों में आरटीआई का उपयोग करने वालों की संख्या बढ़ी है। उम्मीद की जा सकती है कि आने
वाले कुछ बरसों में इस अधिनियम के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ेगी।
साहित्य समीक्षा :
कुमार (2021) ने थिंक टैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी और मरकैटस सेंटर,जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्टडी का हवाला देते हुए बताया
गया कि देश में 70 प्रतिशत कानून ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ना और समझना लोगों के लिए मुश्किल है। आरटीआई भी उन्हीं
कानूनों में से एक है।
वार्षिक प्रतिवेदन (2011) में बताया गया कि तुलनात्मक अध्ययन से यह पता चला है कि सामान्य
जिलों की तुलना में आदिवासी बाहुल्य जिलों में प्रचार-प्रसार कम हुआ है। इसलिए क्षेत्रीय बोली में बाजार, मेला मड़ई के अवसर पर सूचना का अधिकार का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। इसी तरह प्रचार-प्रसार में लोकनाट्य, लोकसंगीत जैसे साधनाेंको भी अपनाया जाना चाहिए।
अध्ययन का उद्देश्य :
छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी
बहुल प्रदेश है। इस राज्य के अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों में सूचना का अधिकार अधिनियम
के प्रति जागरूकता कैसी है। एक दशक में सूचना का अधिकार के प्रति अनुसूचित जनजाति वर्ग
की मानसिकता में किस तरह का बदलाव आया है। इसका अध्ययन किया गया है।
शोध का औचित्य : अनुसूचित जनजातियों में शिक्षा का स्तर बढ़ा है। इसके बाद भी
क्या वे अपने अधिकारियों के प्रति जागरूक हैं।
शोध प्रविधि :1. प्रस्तुत अध्ययन के लिए छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग के वार्षिक
प्रतिवेदन के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है ।
2. इस अध्ययन की शोध विधि अंतर्वस्तु विश्लेषण है ।
सीमाएं: इस अध्ययन के लिए सूचना का अधिकार से संबंधित आंकड़ों का उपयोग
छत्तीसगढ़ के संदर्भ में किया गया है । इसके लिए राज्य के शासकीय विभागों को आधार बनाया
गया है।
भविष्य में अध्ययन के लिए दिशा :
1. सूचना के अधिकार का उपयोग करने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग में
कितने लोग शहरी क्षेत्र से हैं और कितने ग्रामीण क्षेत्र से, इसका आधार बनाकर अध्ययन किया जाना चाहिए।
2. अनुसूचित जनजाति वर्ग के जो लोग सूचना के अधिकार का उपयोग कर
रहे हैं, उनकी शिक्षा का स्तर क्या है। इस पर भी शोध किए जाने चाहिए।
परिणाम व व्याख्या :
उपरोक्त टेबल क्रमांक-1 में छत्तीसगढ़ के शासकीय विभागों को सूचना का अधिकार से मिले
आवेदनों का उल्लेख किया गया है। वर्ष 2010 से लेकर 2019 तक इन विभागों को सूचना का अधिकार से मिले आवेदनों की व्याख्या
की गई है। एक दशक के अध्ययन से यह स्पष्ट हो रहा है कि छत्तीसगढ़ के शासकीय विभागों
से जानकारी प्राप्त करने के लिए आरटीआई का उपयोग किया जा रहा है। अनुसूचित जनजातियों
द्वारा इस अधिकार का उपयोग विभिन्न तरह की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जा रहा
है ।
वर्ष 2010 में छग के शासकीय विभाग को सूचना का अधिकार से कुल 46404 आवेदन मिले ।इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग से मिले आवेदनों की
संख्या 562 थी। यह कुल आवेदनका 1.21 प्रतिशत था। वर्ष 2011 में कुल आरटीआई
आवेदनों की संख्या 48785 थी। पिछले साल की तुलना में
इस वर्ष अनुसूचित जनजाति वर्ग से मिले आरटीआई आवेदनों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई।
उक्त वर्ष शासकीय विभाग को अनुसूचित जनजातियों से कुल 1494 आवेदन मिले। यह संख्या कुल सूचना का अधिकार आवेदनों का 3.06 प्रतिशत था। वर्ष 2012 में भी शासकीय
विभागों को आरटीआई से पिछले साल की तुलना में अधिक आवेदन मिले। उक्त वर्ष कुल 66469 आरटीआई आवेदन मिले। तब अनुसूचित जनजातियों से मिले आरटीआई आवेदनों
की संख्या 3180
थी। यह कुल आवेदन का 4.78 प्रतिशत था।
सूचना का अधिकर के तहत वर्ष 2013 में छत्तीसगढ़ के शासकीय विभागों को कुल 61806 आवेदन मिले । इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग से मिले आवेदनों की
संख्या 3447 रही। वर्ष 2014 में शासकीय
विभागों को 84391
आरटीआई आवेदन मिले। उक्त वर्ष अनुसूचित जनजाति वर्ग से 6.51 प्रतिशत आवेदन मिले। यह संख्या वर्ष 2013 की तुलना में 0.94 प्रतिशत अधिक
रही। वर्ष
2015 में आरटीआई से कुल 80252 आवेदन मिले। वर्ष 2014 की तुलना
में कुल आवेदनों की संख्या उक्त वर्ष कम रही। इस वर्ष शासकीय विभागों को अनुसूचित जानजाति
वर्ग से 3710 आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए। वर्ष 2016 में छग के शासकीय विभागों को मिले आरटीआई आवेदनों की कुल संख्या
में बढ़ोत्तरी हुई। उक्त वर्ष 86629 आवेदन मिले।
उक्त वर्ष अनुसूचित जनजातियों से शासकीय विभागों को 6.17 प्रतिशत आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए। वर्ष 2017 में छत्तीसगढ़ के शासकीय विभागों का एक लाख से अधिक आरटीआई आवेदन
प्राप्त हुए। उक्त वर्ष आरटीआई आवेदनों की कुल संख्या 101579 रही। इस वर्ष अनुसूचित जनजाति वर्ग से 7.49 प्रतिशत आरटीआई आवेदन मिले। वर्ष 2018 में पिछले वर्ष की तुलना में सूचना का अधिकार से मिले आवेदनों
में कमी आई। उक्त वर्ष कुल 91420 आवेदन मिले।
अनुसूचित जनजाति वर्ग से प्राप्त हुए आवेदनों की संख्या 7.21 प्रतिशत रही। वर्ष 2019 में एक बार फिर आरटीआई आवेदनों की संख्या एक लाख से अधिक दर्ज
की गई। उक्त वर्ष शासकीय विभागों को अनुसूचित जनजाति वर्ग से कुल 7348 आवेदन प्राप्त हुए।
वर्ष
|
छग के
शासकीय विभागों को मिले आरटीआई आवेदनों की संख्या
|
अनुसूचित
जनजातियों से मिले आरटीआई आवेदनों की संख्या
|
अनुसूचित
जनजातियों से मिले आरटीआई आवेदनों का प्रतिशत
|
2010
|
46404
|
562
|
1.21 प्रतिशत
|
2011
|
48785
|
1494
|
3.06 प्रतिशत
|
2012
|
66469
|
3180
|
4.78 प्रतिशत
|
2013
|
61806
|
3447
|
5.57 प्रतिशत
|
2014
|
84391
|
5497
|
6.51 प्रतिशत
|
2015
|
80252
|
3710
|
4.62 प्रतिशत
|
2016
|
86629
|
5351
|
6.17 प्रतिशत
|
2017
|
101579
|
7611
|
7.49 प्रतिशत
|
2018
|
91420
|
6598
|
7.21 प्रतिशत
|
2019
|
100548
|
7348
|
7.30 प्रतिशत
|
टेबल-1 छत्तीसगढ़
के शासकीय विभागों को मिले सूचना का अधिकार आवेदनों की संख्या
दस बरसों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो रहा है कि अनुसूचित जनजाति
वर्ग के लोग सूचना के अधिकार का उपयोग कर रहे हैं। वे छत्तीसगढ़ के शासकीय विभागों से
विभिन्न तरह की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। आरटीआई का उपयोग करने के लिहाज से संख्या
बढ़ रही है। एक दशक पहले, वर्ष 2010 में छग के शासकीय विभागों को अनुसूचित जानजातियों से 1.21 प्रतिशत आरटीआई आवेदन मिले । साल दर साल अनुसूचित जनजाति वर्ग
से मिले आवेदनों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। वर्ष 2019 में उक्त वर्ग से शासकीय विभागों को 7.30 प्रतिशत आरटीआई आवेदन मिले। इस तरह से दस सालों में अनुसूचित
जनजाति वर्ग से छग के शासकीय विभागों को मिलने वाले आवेदनों की संख्या में 6.09 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
निष्कर्ष :
प्रस्तुत विषय में सूचना का अधिकार के अपयोग में अनुसूचित जनजातियों
की भागीदारी का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन के लिए छत्तीसगढ़ के शासकीय विभागों को
दस बरसों में प्राप्त हुए सूचना का अधिकार आवेदनों का उपयोग किया गया है। अध्ययन से
ज्ञात हो रहा है कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग सूचना के अधिकार का उपयोग कर रहे हैं।
वे इसके माध्यम शासकीय विभागों से विभिन्न तरह की जानकारियां प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन
अब भी आरटीआई के उपयोग के मामले में अनुसूचित जनजातियों में जागरूकता की कमी है। पिछले
एक दशक में यह देखा गया है कि छग के शासकीय विभागों को प्रतिवर्ष जितने आरटीआई आवेदन
प्राप्त हुए। किसी भी वर्ष उसका 10 प्रतिशतभी अनुसूचित जनजाति
वर्ग से नहीं मिला। हालांकि, इस अध्ययन से यह भी ज्ञात
होता है कि अनुसूचित जनजातियों से शासकीय विभागों को मिलने वाले आरटीआई आवेदनों की
संख्या बढ़ रही है। इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में सूचना का अधिकार के
उपयोग के मामले मेंअनुसूचित जनजातियों की भागीदारी बढ़ेगी।
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अनुसूचित जाति विकास विभाग छत्तीसगढ़ शासन. (2020). प्रशासकीय प्रतिवेदन
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