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टण्डन (2016). सारंगढ़ रियासत के स्थान - नामों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन. Journal of Ravishankar University (Part-A: Science), 22(1), pp.71-80.
Journal
of Ravishankar University,
Part-A,Vol-22, pp.71-80, 2016 ISSN 0970 5910
सारंगढ़ रियासत के स्थान - नामों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन
राजकुमार टण्डन,
साहित्य एवं भाषा -
अध्ययनशाला ,
पं . रविशंकर शुक्ल
विश्वविद्यालय रायपुर
[ Received
: 11 September 2016 ; Accepted : 30 April 2016 ]
सारांश
: सारंगढ़ रियासत
स्वतंत्रता से पूर्व देशी रियासतों में से एक था , जो क्षेत्रफल की दृष्टि से 12
वें क्रम का रियासत था , जिसके संस्थापक जगदेव
साय हैं । सारंगढ़ रियासत में अनेक शासकों जैसे- सबरों , भैना
तथा गोड़ राजवंश ( कल्चुरियों ) ने शासन किया तथा सारंगढ़ के वैभव को और ऊँचा करते
हुए स्वर्ग की तरह वैभवशाली व सुख - सुविधाओं से परिपूर्ण बनाया । सारंगढ़ का
नामकरण काफी दिलचस्प है , जो प्रकृति के आधार पर हुआ है न कि
किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर । सारंगढ़ एक धार्मिक रियासत है , जहाँ प्रारंभ , मध्य और अंत में क्रमशः माता नाथलदाई
( ग्राम टिमरलगा ) , समलेश्वरी दाई ( सारंगढ़ का मध्य भाग )
और कौशलेश्वरी माता ( ग्राम कोसीर ) में स्थित हैं , जो अपने
आशीष से रियासत को धन्य - धान्य व सभी सुख - सुविधा प्रदान करती हैं । सारंगढ़
रियासत का क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है , जो अत्यंत ही सुंदर
दिखाई पड़ता है । यह क्षेत्र ' धर्मों का संगम - स्थल '
, ' मनुष्यों की जन्मभूमि ' तथा ' संस्कृतियों का संगम स्थल ' मान जाता है । यहाँ धर्म
, जाति , पेड़ - पौधे , फल , पशु - पक्षियों , अंक -
रंग - अंग , खाद्य - पदार्थों एवं भूमि- वैशिष्ट्य के आधार
पर स्थानों का नामकरण हुआ है , जो भावी पीढ़ी को ऐतिहासिक ,
धार्मिक , साहित्यिक , राजनैतिक
तथा भौगोलिक जानकारियों से उनका भविष्य उज्ज्वल बनाने में सहायक होगा ।
शब्द
कुंजी-
सारंगढ़ रियासत ,
भाषावैज्ञानिक अध्ययन
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