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तिवारी (1994). बौद्ध दर्शन में मानव - स्वरूप की विवेचना. Journal of Ravishankar University (Part-A: Science), 7(1), pp. 38-46.
बौद्ध दर्शन में मानव - स्वरूप की विवेचना
नीता
तिवारी ( शोध छात्रा )
तुलनात्मक
धर्म एवं दर्शन विभाग
पं
. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,
भूमिका :
भारतीय दर्शन परम्परा उस स्त्रोतस्विनी के समान है जिसके उत्स एवं विस्तार में
पर्याप्त अन्तर है. यद्यपि यह स्थिति विश्व की प्रत्येक दार्शनिक परम्परा की रही
है लेकिन यह स्वीकार करने में किसी को आपत्ति नहीं होगी कि भारत की दार्शनिक
चिन्तनधारा एक अपूर्व एवं दिलचLi घटना
है. संभवतः इसका कारण यह है कि इस देश में जितना अधिक सामाजिक मिश्रण हुआ है,
वैसा संसार के किसी अन्य देश में नहीं हुआ. साथ ही जिन सामाजिक
परिस्थितियों के कारण दार्शनिक मान्यताओं का जन्म होता है उनका ऐसा वैविध्य किसी
अन्य देश में नहीं पाया जाता. भारतीय
चिन्तन परम्परा के सन्दर्भ में भी विभिन्न दार्शनिक मान्यताओं की चर्चा किए बगैर
हम उसे समय रूप एवं सभी सन्दर्भ में समझ सकने में समर्थ नहीं हो सकते. पुनः जहाँ तक जीव (मानव) के स्वरूप से
संबंधित धारणाओं आदि का सम्बन्ध है, उनके
विषय में विचार करते समय,बिना प्रागैतिहासिक जीव स्वरूप संबंधी
मान्यताओं का पता लगाये, समूची भारतीय चिन्तन परम्परा से स्वीकृत
जीव के स्वरूप से भली भांति अवगत नहीं हुआ जा सकता. तथापि प्रस्तुत लेख में हम
केवल बौद्ध दर्शन में मानव स्वरूप को विवेचचना को ही स्पष्ट करने का प्रयास
करेंगे.
NOTE:
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